
संगीत के स्वर मुख्यतया ३ सप्तकों में होते हैं --
(१) मन्द्र सप्तक lower octave
(२) मध्य सप्तक mid octave
(३) तीव्र या तार सप्तक higher octave
(१ )
मन्द्र सप्तक (lower octave) -- वो सप्तक होता है जिसके स्वर अन्य दोनो सप्तकों से नीचे होते हैं या फिर यूं कहें कि इस सप्तक के स्वरों की आवाज़ अपेक्षकृत भारी या मोटी होती है किसी भी सांगीतिक वाद्ययंत्र (musical instrument) का ये पहला पहला सप्तक (octave) होता है | गायक के लिए इन स्वरों पर गाने पर पेट अधिक ज़ोर पड़ता है |

ये blogg मैंने उन जिज्ञासु संगीत के विद्यार्थियों के लिए बनाया है जिनको संगीत के विषय में गहरी रुचि है
(२) मध्य सप्तक (mid octave) -- ये वो सप्तक है जिसमे सभी स्वर न तो बहुत ऊंचे हैं और न ही बहुत नीचे हैं मतलब कि ये एक बीच का सप्तक (octave ) है प्रत्येक सांगीतिक वाद्ययन्त्र में ये अवश्य ही होता है भले ही उसे कितना भी संक्षिप्त (compact ) बनाया जाये, आजकल MIDI keyboards में भी default mode
में मध्य सप्तक आता है अपनी ज़रुरत के अनुसार उन सप्तकों (octaves) को नीचे या ऊपर transpose किया जा सकता है, अगर गायको की बात की जाये तो साधारण गायको के गले में भी मध्य सप्तक तो होता ही है | सतत परिश्रम मेहनत और अभ्यास से तीनो सप्तकों को अपने गले में स्थापित किया जा सकता है |
(३) तीव्र या तार सप्तक (higher octave) -- ये वो सप्तक होता है जिसमें सभी स्वर मन्द्र और मध्य सप्तक से ऊपर के होते हैं सुनने में बारीक और ऊंची आवाज़ होती है तथा इस सप्तक के सभी स्वरों का गाया जाना अन्य स्वरों की तुलना में एक साधारण गायक के लिए थोड़ा कठिन होता है | क्योंकि ये मन्द्र और मध्य दोनों सप्तकों के स्वरों से ज़्यादा ऊंचे होते हैं | वैज्ञानिक तौर (scientifically) इन स्वरों की आंदोलन संख्या (frequency) अन्य सप्तकों के स्वरों से ज़्यादा होती है गाते समय गले पर ज़्यादा ज़ोर इन्ही स्वरों से लगता है और गले पर एक खिचाव महसूस होता है |
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