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स्वर - साधना

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sangeet guru संगीत की  online classes  के लिए संपर्क करें   +91 6396247003 (CALL OR WHATSAPP) सृष्टि की उत्पत्ति का मूल वाक्' को मन जाता है | वाक् के चार प्रकार होते है, परा, पश्यन्ति ,  मध्यमा और वैखरी  इसी वाक् को भारतीय वाड्मय  में शब्द  नाद  आदि संज्ञाओ से निर्दिष्ट किया जाता है  | वाक् के आधार पर ही पुरे संसार का व्यवहार  परिचालित होता है  |  वाक्  के दो रूप होते है    (1) नादात्मक और  (2)  वर्णात्मक  नादात्मक  वाक्  ----- नादात्मक  वाक् आवेग रूप  चित्तवृत्ति  का सूचक होता  है  वर्णात्मक वाक् https://youtu.be/4UvrGR9OGxY?si=hBQMiJslG5zJwjlb   वर्णात्मक वाक् वर्ण से सम्बन्ध होने के कारण  विचार का निदेशक होता  है |     जिस प्रकार भावो के आवेग में अश्रु  पुलक ; कंप इत्यादि  भाव बिना किसी प्रयत्न के स्वत ; ही  प्रकट हों जाते है  |  उसी प्रकार हर्ष, शोक ,  कृध आदि के आवेग म...

राग और थाट के बीच अंतर (DEFRENCES BETWEEN RAAG AND THAAT)

राग और थाट के बीच अंतर


समानताएं -- 

राग और थाट एक बात पर समानता है कि दोनों में स्वरों के १२ स्थानों का प्रयोग किया जाता है। दोनों में ही किसी भी स्वर के तुरंत बाद या पहले उसी स्वर का दूसरा स्वरुप प्रयोग में नहीं लाया जाता। कुछ राग और थाट  भी एक ही नाम के हैं।

(१) थाट की उत्पत्ति ,स्थान के १२ स्वरों से होती है। जब कि राग की उत्पत्ति थाट से मानी जाती है। थाट की उत्पत्ति होती ही है, किन्तु राग की उत्पत्ति थाट से "होती नहीं है "बल्कि मानी जाती है।

(२) थाट स्वरों का समूह है और राग स्वरो की रचना है।

(३) थाट गाया नहीं जाता है जबकि राग गाया बजाया  जाता है।
(४) थाट  में सात स्वरों का होना आवश्यक है, जबकि  राग में सात, छः अथवा पांच स्वर भी हो सकते है।

(५) थाट में कोई स्वर वर्जित नहीं होता किन्तु राग में कई स्वर  कई बार  जैसे कि --- षाडव, औडव रागों में स्वर वर्जित भी होते हैं।

(६) थाट  में सातों स्वर  स्वाभाविक क्रम में होने चाहिए जबकि राग में स्वरों का क्रम बदला भी जा सकता है।  ऐसा कई बार हमें कई रागों विवरण (description) में पढ़ने को मिलता हैं।

(७) थाट  में आरोह अवरोह नहीं होता है। किन्तु राग में आरोह अवरोह का होना अनिवार्य है। थाट गाया बजाया नहीं जाता इसलिए उसमे वर्ण का कोई इस्तेमाल ही नहीं होता है जबकि राग गाया जाता है इसलिए उसमे वर्ण का होना बहुत ज़रूरी हो जाता है।

(८) थाट  में रंजकता का होना आवश्यक नहीं किन्तु थाट में रंजकता (entertainment) का होना आवश्यक है।

(९) थाट  में वादी, पकड़ इत्यादि का कोई भी प्रयोजन (use) नहीं होता लेकिन राग में इन सभी अवयवों (factors) का होना आवश्यक है। क्योंकि राग की रचना इन्ही के द्वारा पूर्ण होती है।

(१०) कुल मिलकर १० थाट  इस समय प्रचलित हैं। और जबकि प्रचलित रागों की संख्या लगभग दो ढाई सौ  तक है।

(11) ठाटों की संख्या निश्चित है ये अधिक से अधिक ३२ हो सकते हैं पं व्यंकट मुखी के अनुसार ये ये ७२ भी हो सकते हैं।  किन्तु रागों की सांख्य निश्चित नहीं है। नित्य नए रागों की रचना हो रही है। इसलिए ये अनगिनत भी हो सकते हैं।
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(१२) थाटों का नामकरण उससे उत्पन्न किसी मुख्या राग के आधार पर हुआ है, किन्तु रागों का नामकरण स्वतंत्र रूप से हुआ है।

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