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कुछ पारिभाषिक शब्द (some definitions) क्रमशः 2
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राग का गायन समय -- प्रत्येक राग के गाने बजाने का एक समय निश्चित होता है , इसी को राग का गायन - समय कहा जाता है |
भारतीय संगीत में रागों के नियमों के अंतर्गत राग गायन - समय की भी एक विशेषता होती है, अपने नियत समय पर गाये बजाये जाने वाले राग अधिक प्राभावशाली व आकर्षक लगते हैं
उदाहरणार्थ यमन, बिहाग आदि राग रात्रि के प्रथम प्रहर में गाये जाते हैं और बिलावल प्रातः काल के प्रथम प्रहर में और खमाज,देश,काफी, आदि राग रात्रि के द्वितीय प्रहर में इन निश्चित समय पर ही गाने बजाने पर ही ये राग भले लगते हैं अतः सभी गायक वादक राग नियम का पालन आदरपूर्वक करते हैं रागों के गायन के समय का समय निम्नलिखित मुख्य बातों पर आधारित होता है |
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(1) पूर्वांग अथवा उत्तरांग आदि
(2) रे, ध,कोमल सभी शुद्ध स्वर तथा गा, नि, कोमल इत्यादि
तान -- "राग के स्वरों का, विशेष क्रमानुसार, द्रुत गति में विस्तार करने को तान कहते हैं " तान शब्द संस्कृत की 'तन' धातु से बना है इसका अर्थ है तानना या 'विस्तार' करना, इस तरह से 'तान' राग स्वरों का "राग विस्तार" है आलाप के समान तान भी संगीत को अलंकृत करने की एक युक्ति है |
तानों में लयकारी का महत्त्व होता है लय को तान का प्राण माना जाता है, यह चपल होने के कारण चमत्कार प्रधान होती है राग स्वर ,जाति,वर्ज्य इत्यादि का ध्यान भी इसमें रखा जाता है फिर भी राग के वादी तथा अन्य न्यूनाधिक परिमाण में लिए जाने वाले स्वरों का स्पष्टीकरण नहीं हो पाता यही कारण है की तान,राग का सांगोपांग स्वरुप प्रतुत नहीं कर पाती है |
ताने गीत के पहले नहीं अपितु गीत के बीच में ली जाती हैं तानों की लयकारी प्रायः तरानों में बराबर की लय में छोटे ख्याल में दुगुन में तथा बड़े ख्याल में चौगुन अथवा अठगुन की लयकारी में होती है |
तानें कई प्रकार की होती हैं जैसे सपाट तान, फिरत की तान,मिश्र तान,आदि गीत के बोलों को लेते हुए जो तान गई जाती है वो बोल तान कहलाती है तानें तीन स्वरों से लेकर कई कई स्वरों तक की होती हैं ताने टप्पा तथा दोनों प्रकार के ख्याल में पर्याप्त मात्रा में ली जाती हैं, ठुमरी, दादरा, तराना, गीत में कम तथा ग़ज़ल, भजन, ध्रुपद, धमार में बिलकुल नहीं ली जाति हैं |
यमन राग की तान देखिये ------------
निरे गम पध निसा निध पम गरे सा -
तानों के कई सारे प्रकार होते हैं
अलंकारिक तान
सपाट तान
छूट तान
इत्यादि तानों का प्रयोग गायन के बीच में होता है वाद्यों में प्रयोग की जाने वाली तानों को तोड़ा कहा जाता है, तान के प्रकारों में अलंकारिक तानों का बड़ा महत्त्व है ये ताने सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं |
सम्पूर्ण जाति के रागों में इन्हें बहुत ही अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा सकता है जिन रागों का चलन वक्र होता है उनमें कुछ सीमित अलंकारों का ही प्रयोग किया जा सकता है |
आलाप और तानों में कुछ भिन्नताएं भी हैं जो कि इस प्रकार हैं --------
समानता -- आलाप व तान दोनों ही स्वरों का विस्तार है और दोनों ही राग विस्तार के लिए प्रयोग किये जाते हैं राग के नियमों का पालन भी दोनों में किया जाता है,दोनों का ही प्रयोग राग गायन वादन की शोभा व सुदरता बढ़ाने के लिए किया जाता है, तथा दोनों के ही कुछ प्रकार भी होते हैं |
भिन्नता -- कई विद्वानों के मतानुसार अलाप और तान में केवल ले का ही अंतर है यदि अलाप को द्रुत लय में गाया-बजाया जाये तो वह तान कहलाएगी, किन्तु यदि गहराई से देखा जाए तब अलाप और तान के बीच लय के अलावा और अंतर पाए जायेंगे जैसेकि :
- अलाप और तान में मुख्य अंतर लय का है अलाप धीमी लय में होती है इसमें स्वर मंद गति में धीरे धीरे लिए जाते हैं लेकीन तान द्रुत अर्थात तेज़ गति में होती है इसमें स्वर जल्दी जल्दी लिए जातें हैं |
- अलाप धीमा होने के कारण राग के भावों आसानी से व्यक्त कर देताहै |इसलिए ये भाव प्रधान होता है पनतु तान द्रुत गति में होने के कारण भावों को व्यक्त नहीं कर पाती यह चपल या तीव्र होती है और इसीलिए चमत्कार प्रधान होती है अतः भाव प्रधान तथा तान चमत्कार प्रधान होती है |
- वादी संवादी, न्यास के स्वर आदि बातों का पालन अलाप के सामान तान में नहीं हों पाता है | यही कारण है कि राग का स्वरुप अलाप के द्वारा ही सम्पूर्ण रूप से स्पष्ट हों पाता है जबकि तान से राग का स्वरुप कम ही स्पष्ट हो पाता है |
- आलाप गीत के बीच में भी लिया जा सकता हा और गीत के पूर्व में भी ध्रुपद गायन शैली न्मेंज पूर्व की अलाप का बहुत महत्त्व होता है किन्तु तान केवल गीत के बीच में ही ली जा सकती नही गीत से पहले नहीं इसीलिए ध्रुपद में तानें नहीं होतीं हैं |
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