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कुछ पारिभाषिक शब्द (some definitions) क्रमशः 1
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संवादी स्वर -- संवादी स्वर का प्रयोग राग में वादी से कुछ कम किन्तु अन्य स्वरों से कुछ अधिक किया जाता है किसी भी राग में वादी स्वर के बाद संवादी स्वर का ही महत्त्व होता है इसीलिए स्वरों को मंत्री के तरह माना जाता है जिस प्रकार किसी राज्य में राजा के बाद मंत्री का स्थान होता है उसी प्रकार राग में वादी के बाद संवादी का स्थान होता है, राग को गाते समय संवादी स्वर पर कुछ अधिक समय तक ठहरा जाता है किसी भी राग में वादी स्वर के बाद चौथा अथवा पांचवा स्वर संवादी होता है |
उदहारण के लिए राग खमाज में वादी स्वर है ' ग ' और संवादी स्वर ' नि ' है जो वादी से पांचवे स्थान पर है
अनुवादी स्वर -- वादी एवं संवादी स्वरों के अतिरिक्त राग में आने वाले अन्य सभी स्वर अनुवादी स्वर कहलाते हैं राग भूपाली में अनुवादी स्वर केवल तीन हैं जबकि काफी , खमाज आदि रागों में पांच पांच , राग देश के वादी संवादी ग , नि को छोड़कर शेष स्वर स, रे, म, प, ध तथा नि स्वर अनुवादी हैं |
अनुवादी स्वर राग विस्तार में वादी संवादी स्वरों की सहायता करते हैं इसीलिए इन्हें अनुचर की उपमा दी गई है यह स्वर राग रुपी राज्य के साधारण कर्मचारी हैं , अनुवादी स्वरों का अपना महत्त्व होता है जिस प्रकार राज्य में केवल राजा तथा मंत्री सहायकों के बिना सभी कार्य सफलता पूर्वक नहीं कर सकते उसी प्रकार वादी संवादी स्वरों को राग विस्तार के कार्य में अनुवादी रूपी अनुचरों की आवश्यकता होती है स्वभावतः इनका महत्त्व वादी संवादी से कम होता है |
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विवादी स्वर -- जो स्वर राग में सामान्य रूप से नहीं होते है किन्तु राग की सुन्दरता बढ़ाने के लिए अल्प मात्रा में प्रयोग किये जाते हैं वह विवादी स्वर कहलाता हैं |
संस्कृत ग्रंथों में विवादी स्वर की व्याख्या इस प्रकार मिलती है
विवादितु सदा त्याज्यं क्वाचित्तन क्रियात्म्कम
अर्थात विवादी स्वरों को सदैव छोड़ देना चाहिए केवल कभी कभी तान में ले सकते हैं
इस प्रकार विवादी एक ऐसा स्वर है जो राग में सामान्य रूप से नहीं होता कितु उसके अल्प प्रयोग की ही अनुमति है |
उदाहरण
भैरवी राग में शुद्ध रे का प्रयोग अल्हैया बिलावल में कोमल नि का प्रयोग तथा बिहाग में तीव्र म का प्रयोग वास्तव में विवादी स्वर के रूप में ही किया जाता है |
विवादी के विषय में निम्नलिखित निष्कर्ष निकल सकते हैं -----
- विवादी स्वर केवल एक ही होता है |
- वादी के समान राग में विवादी का होना आवश्यक नहीं है |
- विवादी स्वर प्रत्येक राग में नहीं होता कई ऐसे राग हैं जिनमें विवादी स्वरों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है उदहारण के लिए हम आसावरी,भूपाली,खमाज, इत्यादि रागों को देख सकते हैं |
- विवादी स्वर का अधिक प्रयोग राग के स्वरुप को बिगड़ देता हैं जैसे कि शत्रु का प्रभाव अधिक बढ़ जाने पर वो उत्पात या गड़बड़ी और अन्य उपद्रव ही उत्पन्न करता है "
- पण्डित व्यंकटमुखी तथा पंडित भातखंडे आदि विद्वानों के स्पष्ट निर्देश के अनुसार विवादी स्वर का प्रयोग थोड़ी मात्रा में व सोच समझकर करना चाहिए |
- जिस प्रकार शत्रु को अपने वश में रखने से राजा की कीर्ति बढती है उसी प्रकार विवादी स्वर का प्रयोग राग की सुन्दरता बढ़ाने के लिए कर सकना बहुत ही चतुराई क कार्य समझा जाता है |
- आजकल कुछ रागों में विवादी स्वरों का प्रयोग अनुवादी की तरह किया जाने लगा है जैसे राग बिहाग में तीव्र म फिर भी उसका प्रयोग सीधा आरोह अवरोह में नहीं किया जाता |
- वर्जित स्वर का प्रयोग कभी नहीं किया जाता जबकि विवादी स्वर को लेने की अनुमति होती है |
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