आश्रय राग -- किसी ठाट की स्वरावली से अत्यधिक मिलता हुआ मुख्य राग जिसके आधार पर उस ठाठ का नामकरण होता है,
"आश्रय राग" कहलाता है
|क्योंकि ठाठ दस माने गए हैं ( उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में )इसलिए आश्रय राग भी दस ही हुए आश्रय राग को ठाठ वाचक राग भी कहते हैं, क्योंकि यही राग को व्यक्त या स्पष्ट करता है खमाज, बिलावल,काफी आदि दस आश्रय राग हैं |
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राग का आरोह - अवरोह -- राग के चलन के अनुसार राग में लिए जाने वाले स्वरों को मध्य "सा" से तार "सा" तक गाने को राग का 'आरोह ' तथा तार के "सा" से मध्य "सा" तक लौटने को राग का 'अवरोह ' कहते हैं |
आरोह अवरोह या अरोही अवरोही में भी स्वरों का चढ़ता उतरता क्रम होता है राग में जो स्वर जहाँ छोड़ने होते हैं, राग के आरोह अवरोह में छोड़ दिए जाते हैं राग के विकृत स्वर आरोह अवरोह में भी विकृत ही रहते हैं तथा राग के चलन के अनुसार उनका आरोह अवरोह भी वक्र (zigzag) हो सकता है
उदहारण ( for example )
राग देश का आरोह अवरोह -------
आरोह
सा रे म प नि सां
अवरोह
सां नि ध प म ग रे ग सा
इसमें उपर्युक्त तीनों ही बातें दिखाई देती हैं आरोह में ग तथा ध स्वर छोड़ दिए गए हैं अवरोह में नि स्वर विकृत है तथा रे से ग पर जाकर इसे वक्र कर दिया गया है |
आरोह अवरोह राग का एक अनिवार्य तथ महत्वपूर्ण लक्षण है यह राग में विचरण करने का तथा राग के विस्तार का मार्ग है | यह राग का 'कायदा' है, राग के आरोह अवरोह से राग का स्वरुप बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है संगीत के विद्यार्थियों को इसे अच्छी प्रकार से कन्ठस्थ कर लेना चाहिए |
वर्जित स्वर -- जिस स्वर का प्रयोग राग में नहीं किया जाता, वह स्वर उस राग का 'वर्जित स्वर ' कहलाता है अर्थात राग में जिस स्वर को लेने की अनुमति नहीं होती है वह स्वर उस राग का वर्जित स्वर होता है | यह स्वर एक या दो भी हो सकते हैं, षाडव जाति के राग में एक स्वर तथा औडव जाति के राग में दो स्वर वर्जित होते हैं, सम्पूर्ण जाति के राग में कोई स्वर वर्जित नहीं होता है |भैरव, भैरवी, काफी, इत्यादि प्रकार के रागों में कोई स्वर वर्जित नहीं होता है |
वर्जित स्वर राग की जातियों पर निर्भर करते हैं |
राग की तीन जातियां व नौ उपजातियाँ हैं अतः वर्जित स्वर राग के आरोह में अवरोह में अथवा आरोह अवरोह दोनो में हों सकते हैं |
खमाज के आरोह में ही रे वर्जित है अवरोह में नहीं आसावरी के आरोह में ग तथा नि स्वर वर्जित है अवरोह में नहीं भूपाली के आरोह अवरोह दोनों में ही म और नि दोनों स्वर ही वर्जित हैं यह भी संभव है की राग के आरोह अवरोह में वर्जित स्वर भिन्न भिन्न हों या एक ही हों बहार आदि रागों में इसके उदहारण मिल जाते हैं |
वक्र स्वर -- गायन वादन के समय जब किसी स्वर का सीधा प्रयोग न होकर टेढ़ा मेढ़ा हों, तो वह वक्र स्वर कहलाता है कई बार राग के आरोह तथा अवरोह में भी स्वरों की चाल सीधी नहीं होती बल्कि क्रम बदलकर होती है यह क्रम वक्र स्वर पर बदला जाता है |राग के विस्तार में या आरोह अवरोह में कई बार हम किसी स्वर तक जाकर, आगे जाने से पहले पीछे के स्वर पर लौटआते हैंऔर फिर जिस स्वर को छोड़कर आगे बढ़ते हैं उस स्वर को वक्र स्वर कहते हैं
वक्र स्वर का तात्पर्य है टेढ़ा, घुमा फिरा कर लिया हुआ, अतः वक्र को आगे जाने से पहले घुमाना - फिराना कर लेते हैं सीधा - सीधा नही |
उदहारण
राग देश के अवरोह में 'रे' वक्र है सीधा नहीं, अवरोह म ग रे स नहीं लिया जाता बल्कि म ग रे ग स, लिया जाता है |
उदहारण
राग हमीर के आरोह में ग म ध नि ध सां तथा अवरोह में ग म रे स है अतः यहाँ आरोह में नि और अवरोह में ग वक्र हुआ कुछ ऐसे राग भी हैं जिनका पूरा चलन ही वक्र होता है जिसमे लगभग सभी स्वर वक्र होते हैं
उदहारण राग पीलू, गौड़ सारंग आदि |
वादी स्वर -- राग में जिस स्वर का प्रयोग एनी स्वरों की अपेक्षा अधिक होता है यानि ऐसा स्वर जिसका प्रयोग राग में अन्यु स्वरों की मुकाबले अधिक परिमाण में किया जाता है उसे राग का वादी स्वर कहा जाता है
वादी स्वर की परिभाषा पंडित अहोबल के अनुसार --
प्रयोगः बहुधा यस्य वादिनम तं स्वरं जदु:
अर्थात जिसका प्रयोग बहुधा या अधिकतम होता है उस स्वर को वादी स्वर कहते हैं |
रागों को गाने बजने के अनुभव से ये सहज ही अनुभव होने लगता है कि राग मे लगने वाले सभी स्वरों का प्रयोग सामान परिमाण या मात्र में नहीं होता बल्कि कुछ स्वरों का अधिक, कुछ स्वरों का सामान्य तो कुछ स्वरों का अधिक मात्रा में होता है | संगीत शास्त्रकारों ने इन सभी स्वरों का विवेचन कर उन्हें वर्गीकृत किया तथा प्रत्येक का नामकरण कर दिया इसी में सर्वाधिक परिमाण वाला स्वर वादी कहलाया |
वादी स्वर की अन्य परिभाषाएं इस प्रकार हैं ----------
१. वदति इति वादी
२. वादी राजाsव गीयते
३ . प्रायोगे विपुलः स्वरः
वादी स्वर के संभंध में कुछ अन्य बातें जानने योग्य हैं
१. प्रत्येक राग में वादी स्वर अवश्य होता है
२. वादी स्वर केवल एक ही होता है
३. राग में यह स्वर प्रधान या मुख्य स्वर होता है
४ गायन अथवा वादन में वादी स्वर का प्रयोग बार बार होता है
५. इस स्वर पर अधिक् ठहराव होता है
६. यह स्वर राग के सभी स्वरों में जोरदार या प्रबल होता है
७. वादी स्वर से राग का स्वरुप स्पष्ट हों जाता है
८. राग में वादी स्वर का बहुत ही अधिक महत्त्व होता है
९. मात्र वादी स्वर के बदल देने से राग बदल सकता है
१०. वादी स्वर राग का गायन समय निर्धारित कर सकता है |
यही कुछ कारण है कि इसे राग में राजा की उपमा दी गई है रगों के सामराज्य में इसका स्थान राजा के समाना ही है वादी स्वर को अंश स्वर, जीव स्वर और प्रधान स्वर जैसे नामों से भी पुकारा जाता है | संस्कृत ग्रंथों में इसे जीव स्वर तथा अंश स्वर ही कहा है राग यमन का वादी स्वर ग तथा बिलावल राग का वादी स्वर ध है इन सभी उदाहरणों से सभी बातें स्पष्ट हों जाती हैं |
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